For all the years of arrogance, for all the scams engineered under your government, for forcing an unwilling son on an unaccepting Junta, for not understanding the hopes and aspirations of millions of us- for all this and more - this one is for you.
.....हुँकारों से महलों की नीव उखड जाती,
साँसों के बल से ताज हम में उड़ता हैं,
जनता की रोके राह समय में ताब कहाँ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता हैं ।
जनता की रोके राह समय में ताब कहाँ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता हैं ।
सबसे विरत जनतंत्र जगत का आ पहुँचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंघासन तैयार करों,
अभिषेक आज रजा का नहीं, प्रजा का हैं,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो ।
तैंतीस कोटि-हित सिंघासन तैयार करों,
अभिषेक आज रजा का नहीं, प्रजा का हैं,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो ।
आरती लिए तू किसे ढूंढ़ता हैं मुरख,
मंदिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में
देवता कही सड़कों पर मिट्टी तोंड रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में खलिहानों में ।
मंदिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में
देवता कही सड़कों पर मिट्टी तोंड रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में खलिहानों में ।
फावड़े और हल राजदंड बनाने को हैं,
धूसरता सोने से शृंगार सजाती हैं,
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंघासन खाली करो की जनता आती हैं ।
धूसरता सोने से शृंगार सजाती हैं,
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंघासन खाली करो की जनता आती हैं ।
Excellent! Very well chosen :)
ReplyDeleteThe poem just says everything we, the people, have been wanting to say for so long, Beloo.
DeleteYour comment brought me here Beloo! What a lovely poem. It gives words to the outrage of the entire nation. Anju, kudos!
DeleteThanks, Dagny for your comment. 'Outrage' is just the word:)
DeleteJanta Janardhan!
ReplyDeleteYes, Rajeev. The Vox Populi.
DeleteTry this from Dinkar:
ReplyDeletehttps://www.youtube.com/channel/UCBHtPALSbWn0WaRusU9_gFg
Please write more on Dinkar too. He needs to be discovered by the new generation.
ReplyDeleteWill do ,XOXO:)
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